Monday 24 December 2018
Sunday 18 September 2016
सागर किनारे
सागर किनारे
हम सभी मैं एक उत्साह सा था ,पहला इस बात का की हम हॉस्टल से भागकर आये थे दूसरा इस जगह को देखने का उत्साह था । मेरा उत्साह समय के साथ बढ़ता जा रहा था । ऐसा लग रहा था जैसे ये सागर की लहरें चींख चींख कर कुछ कहना चाहतीं हों, जैसे मेरे सामने कोई विकराल रूप धारण किये आने वाला हो ।
मेरे दोस्त सागर की लहरों से मस्ती करने चले गए थे और मैं देख रहा था उन लहरों को, जिनका कोई छोर नहीं जिनका कोई अंत नहीं । देखते ही देखते मेरे विचारों की गहराई तूल पकड़ने लगी थी ।
एक तरफ तो मुझे सागर की विशाल लहरें नज़र आ रहीं थी और दूसरी ओर लंबी इमारतें । जिस तरीके से ये लहरें बढ़ती आ रहीं थीं लग रहा था मानो जैसे इनमें कोई रोष हो । जैसे इनका बस नहीं चल रहा नहीं तो रखले सबकुछ अपनी आगोश में ।
जैसे जैसे मैने इसके साथ कुछ वक्त गुज़ारा, कहीं न कहीं मुझे सागर की अंतहीन दहाड़ में प्रेम नज़र आने लगा था।
इस सागर की चींख मैं जैसे एक पुकार थी और कहीं न कहीं मुझे आकर्षित कर रही थी अपनी ओर। मेरा मन पहले जितना विचलित था अब उतना ही शांत होने लगा था। लग रहा था मानो इन लहरों से कोई रिश्ता बन गया हो ।
Wednesday 15 June 2016
बातें
बातें
देखो आज भी खामोश है वो क्यूंकि उसने सीखा है कि ख़ामोशी सबकुछ बयां कर देती है ।
ख़ामोशी तो बहुत कुछ बताती है शरारत , नज़ाकत ,शराफत , महोब्बत ,हक़ीक़त ,इबादत ।
सोचा इस खामोश चेहरे के पन्ने पलटकर देखूं , कहीं कुछ लिखा नज़र आ जाये जिस पर यकीन हो । बहुत कुछ मिला भी मगर वह या तो ऊँचे पहाड़ जैसा था या फिर गहरी खायी की तरह ।
बातों के आसरे में ख़ामोशी सीधी रोड की तरह लगाती है ।
चलो कोई बात करते हैं क्यूंकि ख़ामोशी सबकुछ नहीं बताती ।
Friday 8 April 2016
Ugly Thoughts
Banjarapan pahle cahat thi , fir shauk bani, aur ab aadat.
Peeche chut jane
(डर लगता है , कुछ लोग शायद अपने ज़िद्द की वजह से खेलने न लग जाएँ )
- जल्दी भी बहुत है और जाना भी कहीँ नहीं ।
- कुछ इस तरह जाना मैंने ज़िंदगी को जैसे ये मेरा ख्याल हो ।
- उस जगह पर खोने का क्या मज़ा जहाँ आपको सब मिल जाये । चलो वहां चलते हैं जहाँ ढूंढने के लिए कुछ हो ।
- सोचा पेड़ लगा दूँ हर जगह , फिर ख्याल आया पैसे क्या पेड़ पे उगते हैं |
- एक नज़र मेरी भी ले जाओ , शायद तन्हाई मैं काम आ जाये ।
- अपने बीच की शिकायत को दूर करने के लिए अक्सर हम किसी तीसरे को निशाना बनाते हैं उसमें से हालत भी एक है।
- कभी- कभी लेने और देने के चक्कर मैं हमें लेने - देने भी पड़ जाते हैं ।
- अगर आप गन्दगी साफ नहीं कर सकते तो जूते पहन लीजिए।
(डर लगता है , कुछ लोग शायद अपने ज़िद्द की वजह से खेलने न लग जाएँ )
- दुनिया विश्वास पर ही कायम है भले ही वो अंधविश्वास ही क्यों
- भ्रष्टाचार मिटाना आसान है पर उसके लिए आपको भ्रस्ट आचार करना छोड़ना होगा ।
- लक्ष्मी उसके पास आती है जिसके पास लक्ष्मी होती है बाकी तो सिर्फ दीया जलाते हैं ।
- On the road of being Good. You can sense bad of others, instead of that you treat them well. Finally, you become better.
- Ideal people on ideal time at ideal place can set ideology.
- Almost everything create a loop. It's always like day and night.
- When you continuously suppress your feelings, either it will die or explode(condition apply).
Friday 19 February 2016
Sunday 14 February 2016
KHUSHI
ख़ुशी
एक दिन सुबह चाय पीते हुए उसने मालिक से कहा ।
"मालिक, आपके पास सबकुछ है "।
मालिक थोड़ा सा नज़रें तीखी करते बोला
"सब ऊपरवाले की देन है "।
" मालिक वो तो ठीक है मगर आपको नहीं लगता कुछ कमीं है "।
"श्याम, तुमको अपने काम पर ध्यान देना चाहिए" । जमींदार ने थोड़ा संकुचाते हुए कहा।
पुरे दिन काम करने के बाद जमींदार खाना खाने गया मगर उसकी भूख जैसे गायब सी हो गयी थी। उसका मन जैसे कहीं और ही था। उसकी बीवी माया ने उसकी परेशानी की वजह पूछनी चाही।
"आज क्या बात है तुम इतने परेशान पहले तो कभी नज़र नहीं आये, कोई खास वजह "।
"नहीं माया , कोई खास बात नहीं है , मगर हमारे जीवन मैं कुछ कमीं है ।
माया को ये बात जान कर आश्चर्य हुआ ।
" ऐसा तुमसे किसने कहा" ।
" श्याम ने " ।
"अच्छा ऐसा है तो उसी से पूछ लेते की ऐसी क्या कमीं दिखी उसे जो हमें नज़र नहीं आई "।
" हाँ ये ठीक रहेगा "। थोड़ी राहत तो मिली जमींदार को मगर उस रात उसे नींद नहीं आयी ।
सुबह की चाय पीते हुए जमींदार ने श्याम को पास बुलाया ।
" श्याम तुम्हारी जेब मैं कितने पैसे हैं"।
श्याम ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया ," साहब , मेरी जेब तो खाली है"।
"तुम्हारी जितनी तनख्वाह है उतने पैसे मेरी जेब मैं हमेशा होते हैं "।
श्याम के चहरे पर अब भी मुस्कराहट थी।
मालिक ये देख कर और भी परेशान होते हुए बोला "तुमको क्या अंदाज़ा मेरी कमीं का "।
श्याम मुस्कुराते हए बोला "मालिक आपके पास सबकुछ है मगर "
TO BE CONTINUED...
Saturday 24 October 2015
Sunday 1 March 2015
एक किताब
एक किताब ( एक समझ )
किताब : लोग इसे कुछ भी कहें , मैं इसे किसी की सोच और सूझबूझ का परिणाम कहता हूँ | मेरा मानना है कि किसी की जीवनी ज्यादा रचनात्मक और प्रभावशाली होती है |
किताब जैसे किसी की परछाई होती है ,हर बडा इंसान अपनी परछाई छोड देना चाहता है और उसके लिए लिख देता है, एक किताब |
किसी ने खूब कहा है किताबों से बढ़कर कोई तुम्हारा दोस्त नहीं हो सकता ये बात सिर्फ वही समझ सकता है जिसने किताबों से दोस्ती करना सीखा है। जैसे दोस्ती के लिए सोच का नहीं समझ का होना ज़रूरी है वैसे ही किताबों की समझ का होना ज़रूरी है। किताबों को समझना मतलब उस व्यक्ति की भावनाओं को समझने जैसा है जिसने इसको लिखा । और यकीन मानो ये बातें भी करती हैं पर ये तुम्हारे पास जाती नहीं तुमको अपने पास बुलाती हैं ।
आप किसी के व्यक्तित्व का पता उसकी पढ़ी हुयी किताबों से लगा सकते हो ये उसके फ्रेंड सर्किल की तरह होती हैं । किताबें हैं क्या ,किसी के विचारों का संग्रह । दोस्ती क्या है ,विचारों का मेल। हम किताब ही वही पढ़ते हैं जो हमें पसंद हो मतलब मेल न होने का तो सवाल ही खत्म हो जाता है । दोस्त की बोली और आवाज मे फर्क आ सकता है मगर किताबें हमेशा उसी आवाज में बोलती हैं जिसमें हम सुनना चाहते हैं । आपके दोस्त से आपकी बात बने न बने मगर यकीन मनो किताबों से आपकी बात ज़रूर बन जाती है ।
यूँ तो मुझे किताबें पढ़ने का बचपन से शौक रहा है मगर जाने अनजाने मैं हम सब एक किताब लिख रहे होते हैं और मैं भी लिख रहा हूँ एक किताब।
Tuesday 24 February 2015
भारतवर्ष
यूँ तो अपने देश से हर किसी को प्रेम होता है , शायद यही मेरे प्रेम का आधार हो की ये मेरा अपना है या फिर विविधताओं से परिपूर्ण ये देश ही कुछ खास है |
अगर मैं इसकी छवी का आंकलन करूँ तो में इसे एक विभिन्न रगों की माला कहूँगा ,जिसका कोई मोल नहीं | जिसकी चमक ने पूरे संसार को अपनी ओर आकर्षित किया और धीरे धीरे सारा संसार इसका अभिन्न अंग बन गया |
इसके हर एक मोती में भरा पड़ा है ,जाति , धर्म और भाषा का एक विशाल संयोग जो इसको एक अद्भुत रंग देता है .....
Wednesday 10 September 2014
मैं शराबी नहीं हुँ
मैं शराबी नहीं हुँ
कभी आपने नशा मुक्ति केंद्र के आगे इतनी भीड़ देखी है जितनी नशा केंद्र(bar) के सामने ।
नशा मुक्ति केंद्र एक भूत बंगले की तरह खाली पड़े होते हैं। ऐसा लगता है जैसे इनका अस्तित्व ज़बरदस्ती बनाया गया हो। उस बेचारे पर क्या बीतती होगी जो इश्स भूत बंगले का चौकीदार बना होगा ( डॉक्टर) । सोचो कहीं वो बेचारा गम में ना पीने लगा हो की यहाँ कोई आता जाता ही नहीं हो।
किसी से मैंने नशा करने वाले से मैंने पूछा आप नशा मुक्ति केंद्र क्यूँ नही जाते । उनका जवाब था ,"क्यूंकी मैं पागलख़ाने नही जाना चाहता काफ़ी गहराई है इस बात में।
हरिवंश राय जी की एक कविता है मधुशाला। विश्वास मानो इस कविता को इस कदर लिखा गया है जैसे कोई शिल्पकार मूर्ति बना रहा हो की कहीं कोई ग़लती ना हो जाए । फर्क सिर्फ इतना है की इसमें भगवान बोतल है ।इस कविता की हर लाइन में मानो पीनेवाले की आत्मा को समर्पित हो।
शराब और मोहब्बत के नशे में न जाने कितने ही किस्से लिख़ डालें गए हैं कहीं न कहीं इतहास भी इसका गवाह है । मिसाल के तौर पर ना जाने कितने ही लोगों ने एक शराब की बोतल को अपने शब्दों से सजाया , हाल मैं एक गाना आया चार बोतल वोडका । समय के हिसाब से शब्द बदले मगर बोतल की शान में कोई कमी नहीं आई बल्कि चार चाँद लगे हैं । समय के हिसाब से इसने अपना रूप बदला है मगर चीज़ वही है, मदिरा।
मगर जब ये हद्द से आगे बढ़कर अपना असर शुरू करती है तो सारे स्टेटस बार हटा कर सबको एक लाईन में खड़ा कर देती है , शराबी
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